बंदऊं अवधपुरी अति पावनि । सरयू सरि कलि कलुष नसावनि॥
सनमुख होइ जीव मोहि जबहीं। जन्म कोटि अघ नासहिं तबहीं ॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानि। जपि जेहिं पीय संग भवानी।।
सुमिरि पवनसुत पावन नामू। अपने बस करि राखे रामू।।
तुलसी मेरे राम को, रीझ भजो या खीज। भौम पड़ा जामे सभी, उल्टा सीधा बीज॥
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी ॥
जो आनंद सिंधु सुखरासी। सीकर तें त्रैलोक सुपासी॥ सो सुखधाम राम असि नामा। अखिल लोक दायक विश्रामा॥
जब सुग्रीवँ राम कहुँ देखा। अतिसय जन्म धन्य करि लेखा ॥ सादर मिलेउ नाइ पद माथा। भेंटेउ अनुज सहित रघुनाथा ॥
सिंघासन पर त्रिभुअन साईं। देखि सुरन्ह दुंदुभीं बजाई ॥
बंदउँ बाल रूप सोइ रामू। सब सिधि सुलभ जपत जिसु नामू॥ मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवउ सो दसरथ अजिर बिहारी॥
यहाँ निःशुल्क भोजन प्रसाद मिलता है(अधार कार्ड का ले जाना आवश्यक है)
इस मंदिर को चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के द्वारा पुनर्निर्मित किया गया था।
लच्छन धाम राम प्रिय सकल जगत आधार । गुरु बसिष्ट तेहि राखा लछिमन नाम उदार ॥
गोस्वामी तुलसीदास को समर्पित,तुलसी स्मारक भवन संग्रहालय की स्थापना वर्ष 1969 में की गई थी।
रघुकुल रीति सदा चलि आई। प्रान जाहुँ बरु बचनु न जाई ॥
यह विद्या कुंड के पास स्थित हैं और यहाँ भगवान राम और माता सीता हरितालिका तीज के दिन झूला झूलते थे।
भरत कुंड वह पवित्र स्थल है जहाँ भरत जी ने भगवान राम के जाने के बाद राज्य का त्याग करके उनकी प्रतीक्षा में तप किया था।
मो सम दीन न दीन हित तुम्ह समान रघुबीर । अस बिचारि रघुबंस मनि हरहु बिषम भव भीर ॥
भगवान श्री स्वामीनारायण के जन्मस्थली